इस लेख में आप पूरी दुनिया में सभी छात्रों के लिए दुनिया के सबसे बड़े प्रेरणा-श्रोत (Inspiration) और मिसाइल-मैन के नाम से मशहूर जो गरीबी से निकलकर के भारत वासियों के असल हीरो बनने वाले एपीजे अब्दुल कलाम का जीवन परिचय | APJ Abdul Kalam biography in hindi के बारे में जानने वाले हैं।
आपकी जानकारी के लिए बता दें कि कलाम साहब बहुत ही सिंपल (ज़मीन से जुड़े हुए) व्यक्ति थे जोकि इंसानियत के प्रति ईमानदार और साथ ही जीवन-भर एक दरियादिल (Humble) इंसान रहे। इसी कारण कलाम साहब की आज भी हर कोई इज्जत और उन्हें प्यार करता है।
कलाम साहब ने कहा था कि मेरी कहानी मेरे साथ ही ख़तम हो जायेगी क्योंकि दुनिया को भी मालूम है कि मेरे पास कोई पूँजी नहीं है और न ही मैंने जमा की है। मेरे पास कुछ भी नहीं है; न कोई बेटी न बेटा और न ही परिवार है। मैं दूसरों के लिए मिशाल नहीं बनना चाहता लेकिन शायद कुछ पढने वालों को प्रेरणा मिले। जिससे कि वह पढें और उनको चयन मिले।
नाम | ए.पी.जे. अब्दुल कलाम |
पूरा नाम | डॉ. अवुल पकीर जैनुलब्दीन अब्दुल कलाम |
मशहूर नाम | मिसाइल मैन ऑफ़ इंडिया |
जन्म | 15 अक्टूबर, 1931 |
जन्म-स्थान | धनुषकोणी गाँव, रामेश्वरम, मद्रास प्रेसीडेंसी (ब्रिटिश इंडिया), अब – तमिलनाडु, भारत |
पिता | जैनुल्लाब्दीन |
माता | आशिंमा |
राष्ट्रीयता | भारतीय |
धर्म | इश्लाम |
शिक्षा | हाई स्कूल (स्वार्ड्स हाई स्कूल, रामनाथपुरम), इंटरमीडिएट और ग्रेजुएशन (सेंट जोसेफ कॉलेज, तिरुचिरापल्ली), एयरोनॉटिकल साइंस डिप्लोमा (MIT – मद्रास इंस्टिट्यूट ऑफ़ टेक्नोलॉजी) |
पेशा | अंतरिक्ष वैज्ञानिक, प्रोफ़ेसर, लेखक और भारत के 11वें राष्ट्रपति |
पुरुस्कार | पद्म भूषण (1981), पद्म विभूषण (1990) और भारत रत्न (1997) आदि |
म्रत्यु | 27 जुलाई, 2015, शिल्लोंग, मेघालय (भारत) |
डॉ अवुल पकीर जैनुलब्दीन अब्दुल कलाम (Dr. Avul Pakir Jainulabdeen Abdul Kalam) के शुरूआती जीवन की बात करें तो इनका जन्म 15 अक्टूबर, 1931 को धनुषकोणी गाँव, रामेश्वरम, मद्रास प्रेसीडेंसी, ब्रिटिश इंडिया (जोकि अब भारत का तमिलनाडु राज्य है) के एक मध्यम-वर्गीय (गरीब) तमिल परिवार में हुआ था।
कलाम (APJ Abdul Kalam) के पिता जैनुलब्दीन (Jainulabdeen) जोकि यात्रिओं को खुद की बनाई हुई नाव में रामेश्वरम से धनुशकोणी का दौरा करवाते थे। मतलब वह नाव में लोगों को लाने-लेजाने का काम करते थे। कलाम की अम्मी (माँ) का नाम आशिंमा (Ashiamma) ज़ोकी एक गृहणी थीं। इसके अलावा कलाम के 3 बड़े भाई और एक बड़ी बहन थी।
कलाम बचपन में अपने पिता के साथ हर रोज नबाज पढने जाते थे। बता दें कि कलाम को पिता के द्वारा दयानदारी और आत्मानुशासन (Self discipline) और माँ से अच्छाई पर यकीन करना और रहमदिली विरासत में मिली थी। इसी कारण कलाम साहब जीवन-भर एक बहुत ही अच्छे इंसान रहे थे।
कलाम के बचपन में सबसे अच्छे दोस्त उनके बहनोई अहमद जल्लालुद्दीन जोकि कलाम से 15 साल बड़े थे। इनके अलावा कलाम के चचेरे भाई समसुद्दीन से उनका बहुत ही याराना सम्बन्ध थे।
कलाम के इसी चचेरे भाई समसुद्दीन के पास रामेश्वरम में अख़बारों का ठेका था जोकि वह रामेश्वरम रेलवे-स्टेशन से सभी अख़बार अकेले ही लाता था। लेकिन 1939 में द्वतीय विश्व-युद्ध के कारण रेलगाड़ीयों का स्टेशनों पर रुकना बंद हो गया था। इसी कारण अख़बारों का गट्ठा रामेश्वरम और धनुषकोणी के बीच से गुजरने वाली सड़क पर चलती रेलगाड़ी से फैंक दिया जाता था। जिस कारण से समसुद्दीन को मजबूरन एक मददगार रखना पड़ा जोकि अख़बारों कि गट्ठे सड़क से इकट्टे कर सके। वह मौका कलाम को मिला और समसुद्दीन कलाम की पहली आमंदनी की बजह बना था।
कलाम (APJ Abdul Kalam) की शिक्षा की बात करें तो इन्होने शुरूआती पढाई रामेश्वरम से दूर जिला मुख्यालय रामनाथपुरम शहर के स्वार्ड्स हाई स्कूल (Schwartz high school) से की थी। कलाम स्कूल के शुरूआती दिनों से ही पढाई के प्रति बहुत अधिक लग्न-शील थे। इसके अलावा कलाम को बचपन से ही परिदों की तरह आकाश में उड़ने और जीवन में कुछ बड़ा करने का जूनून था। इसी कारण उन्होंने बचपन में ही फैसला कर लिया था कि मैं अपनी तालीम को आगे भी जारी रखूँगा।
इसके बाद 1950 में कलाम ने इंटरमीडिएट पढने के लिए सेंट जोसेफ़ कॉलेज, तिरुचिरापल्ली (St. Joseph, Tiruchirapalli) में दाखिला ले लिया। इसके बाद कलाम ने B.Sc में ग्रेजुएशन भी इसी कॉलेज से पूरा किया।
कलाम को ग्रेजुएशन करने के बाद लगा कि मुझे अपने सपने पूरे करने के लिए इंजीनियरिंग करनी चाहिए थी।
इसके बाद कलाम ने मद्रास इंस्टिट्यूट ऑफ़ टेक्नोलॉजी (MIT) में उम्मीददवारी के लिए नामांकन किया और किसी भी तरह कलाम का नाम MIT की उम्मीदवारों की सूची में तो आ गया, लेकिन उसमे दाख़िला बहुत मंहगा था। MIT में दाखिले के लिए कम से कम 1000 रूपये की ज़रूरत थी जोकि इतने पैसे एक साथ कलाम के पिता के पास जुटाना बहुत मुश्किल था।
कलाम की पढाई के प्रति महनत को देख उनकी बहन ज़ोहरा ने ‘सोने के कंगन और ज़जीर’ को बेचकर कलाम के दाखिले का इंतजाम किया। कलाम को खुद पर परिवार की उम्मीद और यकीन को देखकर उन्होंने ठान लिया कि मुझे अच्छे परिणामों के साथ जीवन को एक नई दिशा देनी ही है।
इसके बाद डॉ कलाम ने ‘मद्रास इंस्टिट्यूट ऑफ़ टेक्नोलॉजी’ (MIT) से ‘एयरोनॉटिकल साइंस’ में सफ़लतापूर्वक डिप्लोमा (इंजीनियरिंग) की पढाई पूरी की।
बता दें कि कलाम के व्यवहार और पढाई के प्रति बहुत अधिक महनत को देख इंजीनियरिंग करते समय सभी शिक्षक बहुत ही सपोर्टिव थे।
डॉ. अवुल पकीर जैनुलब्दीन अब्दुल कलाम ने सफ़लतापूर्वक इंजीनियरिंग करने के बाद वह बैंगलोर के हिंदुस्तान एरोनॉटिक्स लिमिटेड (HAL) में बतौर ट्रेनी के रूप में भर्ती हो गये। इसके बाद कलाम HAL से बतौर इंजिनियर ट्रेनिंग पूरी करके बाहर निकले तो उनके पास नौकरी के दो मौके थे जोकि दोनों उनके बचपन के ख्वाब पूरे कर सकते थे।
जिसके पहला नौकरी करने का मौका एयरफ़ोर्स तो दूसरा मिनिस्ट्री ऑफ़ डिफेंस में डायरेक्टरेट ऑफ़ टेक्निकल डेवलपमेंट एंड प्रोडक्शन का था। कलाम ने दोनों नौकरी के लिए अर्जी भेज दी। इसके कुछ दिन बाद ही कलाम को दोनों जगह से इंटरव्यू के लिए बुलावा आ गया। जिसमे एयरफोर्स के लिए देहरादून से बुलाया गया और डिफेन्स के लिए दिल्ली बुलाया गया था।
कलाम ने पहले दिल्ली जाकर डिफेंस मिनिस्ट्री का इंटरव्यू दिया। जिसमे वह एक सप्ताह दिल्ली रुके और इंटरव्यू बहुत अच्छा हुआ था।
इसके बाद कलाम (APJ Abdul Kalam) ‘एयरफ़ोर्स सिलेक्शन बोर्ड’ में इंटरव्यू के लिए देहरादून निकल गए। देहरादून में एयरफोर्स की 8 रिक्ति (Vacancy) के लिए 25 उम्मीदवारों में कलाम का 9वां स्थान आया। जिसके बाद मानों कलाम का मायूसी से दिल ही बैठ गया क्योंकि उनका एयरफोर्स में नौकरी करना दिली ख्वाहिश थी।
इसके बाद कलाम एक मायूसी लेकर देहरादून से दिल्ली वापिस लौटे और डिफेंस में इंटरव्यू का नतीजा लिया तो जबाव उन्हें नियुक्ति-पत्र थमा दिया और अगले ही दिन कलाम ने सीनियर साइंटिफिक अस्सिस्टेंट का पद संभाला।
इसके बाद कलाम ने इस पद पर लगातार तीन वर्ष तक काम किया। इसी बीच बैंगलोर में ADE मतलब ‘एयरोनॉटिकल डेवलपमेंट एस्टाब्लिश्मेंट’ का नया महकमा खुला और कलाम को वहां नियुक्त कर दिया गया। जहाँ उन्होंने अपनी टीम के साथ मिलकर एक होवर एयरक्राफ्ट (Hover Aircraft) पर काम किया था। यहाँ काम करने के बाद कलाम को INCOSPAR (The Indian Committee for Space Research) में बतौर ‘राकेट इंजिनियर’ चुन लिया गया।
इसके बाद वर्ष 1962 में INCOSPAR (इंडियन नेशनल कमेटी फॉर स्पेस रिसर्च) ने थुम्बा (Thumba), थिरुवानान्थापुरम, केरला में एक ‘इक्वेटोरियल राकेट लौन्चिंग स्टेशन’ (Equatorial Rocket Launching Station) स्थापित किया गया। इसे स्थापित के तुरंत बाद कलाम को 6 माह के लिए NASA यूनाइटेड स्टेट्स ऑफ़ अमेरिका में राकेट लौन्चिंग की ट्रेनिंग के लिए भेज दिया गया।
कलाम के अमेरिका से वापिस भारत लौटते ही डॉ. विक्रम साराभाई (Dr. Vikram Sarabhai) का ISLV (Indian Setelite Launch Vehicle) काख्वाव को पूरा करने के लिए इंडिया ने अपना पहला साउंडिग राकेट 21 नवम्बर, 1963 को लौंच कर दिया। जिसका नाम नाइके अपाचे रखा गया था।
बता दें कि ISLV मतलब ‘इंडियन सेटेलाइट लौंच व्हीकल’ का बनाने का श्रेय प्रोफ़ेसर विक्रम साराभाई को दिया जाता है। जिन्होंने इसे बनाने का सारा कार्य-भार डॉ कलाम के जिम्मे कर दिया था। जिसमे कलाम खरे उतरे थे और कलाम सभी मिसाइल पैनल की मीटिंग्स के बाद डॉ. विक्रम साराभाई को मीटिंग की पूरी रिपोर्ट सौंपते थे।
कलाम को सबसे बड़ा सदमा 30 दिसम्बर, 1971 को लगा क्योंकि इस दिन प्रोफ़ेसर विक्रम साराभाई का दिल का दौड़ा पड़ने से इंतकाल हो गया। डॉ कलाम साहब प्रोफ़ेसर साराभाई को भारतीय विज्ञान का राष्ट्र-पिता मानते थे।
डॉ. विक्रम साराभाई के देहांत के बाद कुछ समय तक प्रोफेसर एम.जी.के. मेनन ने अंतरिक्ष अनुसंधान (Space Research) का काम संभाला लेकिन जल्द ही प्रोफ़ेसर सतीश धवन को ISRO (इंडियन स्पेस रिसर्च आर्गेनाईजेशन) की जिम्मेदारी दे दी गई थी।
प्रोफ़ेसर विक्रम साराभाई की म्रत्यु के बाद इनके सम्मान में थुम्बा के इक्वेटोरियल राकेट लौन्चिंग स्टेशन (Thumba Equatorial Rocket Launching Station) का नाम बदलकर VSSC (विक्रम साराभाई स्पेस सेण्टर) कर दिया गया। बता दें कि विक्रम साराभाई ‘भारतीय स्पेस प्रोग्राम’ के पिता के रूप में जाने जाते हैं।
इसके बाद डॉ कलाम और पूरी टीम SLV-3 (Satellite Launch Vehicle) की तैयारियों में जुट गई। जब कलाम को बहुत ज्यादा ध्यान की जरूरत थी; इसी बीच कलाम के परिवार में एक के बाद एक लगातार तीन मौते हो गईं। जिनमे पहली उनके बहनोई, दूसरी उनके पिता और तीसरा उनका माँ का देहांत हो गया था।
इन सभी चीजों को दर-किनार कर कलाम और उनके साथी वैज्ञानिकों ने अपने काम के प्रति पूरी ईमानदारी रखी और 1979 में SLV-3 का काम पूरा कर लिया गया।
इसके बाद SLV-3 की उडान का दिन 10 अगस्त, 1979 रख दिया गया और इसी दिन सुबह 7 बजकर 58 मिनट्स पर श्रीहरिकोटा (Sriharikota) से SLV ने उड़ान भरी। 317 सेकंड्स आसमान में रहने के बाद श्रीहरिकोटा से 560 किलोमीटर दूर मिसाइल का मालवा समुंद्र में जाकर गिरा और SLV-3 की उडान की कोशिश नाकामयाब रही जोकि कलाम और उनके सहयोगियों के लिए बहुत बड़ा सदमा था। इस असफ़लता की पूरी ज़िम्मेदारी डॉ. कलाम ने अपने कंधों पर ली थी।
इस असफ़लता के बाद भारतीय मीडिया ने SLV-1 और SLV-2 की उड़ानों की याद दिलाते हुए; SLV-3 की नाकामयाबी की बहुत अधिक आलोचनाएँ की थीं।
इस सफलता के बाद कलाम और उनकी सभी सहयोगियों ने उसी ‘सेटेलाइट लौंच व्हीकल’ पर दोबारा से अधिक तेजी से काम शुरू कर दिया। जिसके पश्चात 18 जुलाई, 1980 को सुबह 8 बजकर 3 मिनट्स पर SLV-3 की उडान का समय निर्धारित किया गया।
इस बार SLV-3 की उडान सफ़ल रही और रोहिणी सेटेलाइट को अंतरिक्ष में सफलतापूर्वक प्रक्षेपित कर दिया गया। यह सफ़लता डॉ. कलाम और भारतवासियों के लिए सबसे बड़ी खुशखबरी थी क्योंकि भारत देश भी उन चंद (कुछ) देशों में शामिल हो गया था। जिनके पास सेटेलाइट लौंच करने काबिलियत (क्षमता) थी। बता दें कि इस लौंच व्हीकल में की गई सारी कोशिशे पूरी तरह से स्वदेशी (घरेलू) थीं।
बता दें कि उस समय मिसाइल प्रोग्राम्स को विकसित करने के लिए बहुत अधिक तकनीकें मौजूद नहीं थीं।
मशहूर किस्सा –
कलाम साहब (APJ Abdul Kalam) अपनी ऑटोबायोग्राफी ‘दी विंग्स ऑफ़ फायर’ में बताते हैं कि SLV-3 की सफ़लता के बाद मुझे ‘प्रोफ़ेसर सतीश धवन’ साहब के द्वारा प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी के पास बुलाने के लिए सन्देश मिला। जिसके बाद मैंने उनसे कहा कि मेरे पास प्रधानमंत्री जी से मुलाक़ात करने वाला लिवाज (कपडे) तो है ही नहीं। जिसके बाद मुझसे सतीश धवन साहब ने कहा कि आप इसकी बिलकुल भी चिंता मत करो क्योंकि आपने पहले से ही कामयाबी का चौला पहन रखा है।
इसके बाद 1981 का गणतंत्र दिवस डॉ. कलाम के लिए सबसे बड़ी ख़ुशी लेकर आया क्योंकि इस मौके पर कलाम को पद्म-भूषण से नवाजा गया था।
इसके बाद डॉ कलाम को 1 जून, 1982 को DRDL मतलब ‘डिफेन्स रिसर्च एंड डेवलपमेंट लेबोरेट्री’ में बतौर उच्चतम पद नियुक्त कर दिया गया। इसके बाद भारत में पूर्ण-मिसाइल बनाने का प्रोग्राम शुरू कर दिया गया ज़ोकी बाद में भारत की वैश्विक ताक़त का सबूत बना।
इसके बाद भारत ने कई मिसाइल पर काम करना शुरू कर दिया; जिसमे भारत ने सबसे पहले सतह-से-सतह प्रथ्वी मिसाइल को 25 फरबरी 1988 को सुबह 11 बजकर 23 मिनट्स को लौंच कर प्रथ्वी मिसाइल की सफ़लता का जश्न मनाया। यह एक एतिहासिक मौका था क्योंकि प्रथ्वी मिसाइल सरफेस-से-सरफेस मिसाइल ही नहीं थी वल्कि भारत के भविष्य की सभी मिसाइलों का बुनियादी ढांचा भी थी।
इस मिसाइल प्रोग्राम ने भारत के पडोसी देशों को देहला दिया और पश्चिमी देशों को पहले तो आश्चर्य हुआ और फिर गुस्से का इजहार कर भारत पर कई प्रकार की पावंदी लगा दी। मतलब उन्होंने कहा कि भारत अपने मिसाइल प्रोग्राम्स के लिए काम आने वाला सामान किसी भी बाहरी देश से नहीं ख़रीद सकता है। लेकिन भारतीय-सरकार इन प्रोग्राम्स के आगे दीवार बनकर आगे खड़ी रही और इन प्रोग्राम्स पर काम जारी रहा।
इस मिसाइल की सफ़लता के बाद ही अग्नि-मिसाइल पर काम शुरू कर दिया गया था। जिसमे 500 से ज्यादा साहिंस्थान शामिल थे। अग्नि-मिसाइल की उड़ान 20 अप्रैल, 1989 को तय की गई और हिफ़ाजत के लिए आसपास के सभी गाँव ख़ाली करवा दिए गए थे।
इसके बाद भारतीय अख़बार और मीडिया ने इस प्रोग्राम को इतना बड़ा मुद्दा बना दिया कि 20 अप्रैल, 1989 आते-आते तमाम देशों की नजर भारत के इस मिसाइल प्रोग्राम पर थी। जिस कारण पश्चिमी देशों का दबाब भारत पर इस मिसाइल प्रोग्राम को रद्द करने के लिए होने लगा लेकिन भारतीय-सरकार ने किसी भी तरह इस मिसाइल प्रोग्राम को पीछे नहीं हटने दिया।
20 अप्रैल, 1989 को इस मिसाइल का परिक्षण शुरू हुआ लेकिन कुछ अंदरूनी खामियों के चलते इस मिसाइल प्रोग्राम की उड़ान को कुछ दिन के लिए रोक दिया गया। इसके बाद लगातार 10 दिन मिसाइल की अंदरूनी दुरुस्ती पर काम किया गया। अग्नि-मिसाइल को उड़ान के लिए एक बार फिर से तैयार किया गया, लेकिन एक बार फिर से पता चला कि मिसाइल का एक पुर्जा काम नहीं कर रहा है। और उड़ान को फिर से रोक दिया गया।
इसके बाद तो मानो अख़बारों और मीडिया ने कार्टून्स आदि बनाकर आलोचना कर अपनी दिली तमन्ना पूरी कर ली।
अग्नि की इस असफ़लता के बाद पुनः मरम्मत का काम चलता रहा और आखिरकार 22 मई, 1989 सुबह 7 बजकर 10 मिनट्स को अग्नि-मिसाइल की उडान का दिन तय कर दिया गया।
कलाम साहब अपनी ऑटोबायोग्राफी में बताते हैं कि –
“अग्नि-मिसाइल की उडान के एक दिन पहले मैं, डॉ. अरुणाचलम, चनल के.एन. सिंह और दिफ्फेंस मिनिस्टर के.सी. पंत रात्री की चहल कदमी कर रहे थे। इस दौरान मिनिस्टर के.सी. पंत ने कलाम से पुछा कि यदि आप अग्नि की उडान में सफ़ल होते है तो आप किस तरह से जश्न का इजहार करोगे। इसके बाद कलाम ने जबाव दिया कि हम सभी मिलकर एक लाख पेड लगाकर अग्नि की उडान के लिए धरती माँ का आशीर्वाद लेंगे।”
जिसके बाद अगले दिन सुबह 7 बजकर 10 मिनट्स पर अग्नि-मिसाइल का प्रक्षेपण का कदम-कदम सही रहा और अग्नि की उडान ने कलाम और सभी सहयोगियों की वर्षों की महनत और कोशिशों की थकान को हमेशा के लिए मिटा दिया।
बता दें कि इस मिसाइल प्रोग्राम को रोकने के लिए भारत ने हर तरह के दबाब बर्दाश्त किये थे लेकीन भारत ने करके दिखा दिया जो उन्हें करना था।
इस उडान के बाद 1990 को गणतंत्र-दिवस पर भारत-देश ने मिसाइल प्रोग्राम की कामयाबी का जश्न मनाया और डॉ. कलाम को पदम् विभूषण से नवाजा गया था।
डॉ. कलाम साहब ने बहुत सारी असफलताएं देखीं और वह कहते थे कि –
“कोई सक्श कितना भी छोटा क्यों न हो, उसे हौसला नहीं छोड़ना चाहिए।”
डॉ कलाम (APJ Abdul Kalam) के राष्ट्रपति बनने की बात करें तो 10 जून, 2002 को डॉ. कलाम को अन्ना विश्वविधालय के कुलपति डॉ. कलानिधि का सन्देश मिला कि प्रधानमंत्री—कार्यालय उनसे संपर्क स्थापित करने की कोशिश करने लग रहा है। इसी कारण आप जल्द ही कुलपति के दफ्तर (Office) चले आयें ताकि प्रधानमंत्री से आपकी बात-चीत हो सके।
जैसे ही डॉ. कलाम प्रधानमंत्री कार्यालय से जुड़े तो कार्यालय कि ओर से टेलीफोन लाइन पर अटल बिहारी बाजपेयी थे। बिहारी ने कलाम से कहा कि कलाम साहब देश को आपकी राष्ट्रपति के रूप में जरूरत है।
इसके बाद कलाम ने बाजपेयी को धन्यबाद दिया और कहा कि इस पेशकश के लिए मुझे कम से कम एक घंटे का समय चाहिए। जिसमे बाजपेयी जी ने कहा कि आप समय जरूर ले लीजिये लेकिन मुझे आपसे केवल हाँ में जबाव चाहिए न में नहीं।
उसी शाम NDA के सयोंजक जोर्ज फर्नांडिस, संसदीय कार्य मंत्री प्रमोद महाजन, आंद्रप्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू और उत्तर-प्रदेश की मुख्यमत्री मायावती ने सयुंक्त संवाददाता सम्मेलन आयोजित कर डॉ. कलाम की उम्मेदवारी का एलान कर दिया।
इसके बाद डॉ. कलाम को 25 जुलाई, 2002 को भारत के 11वें राष्ट्रपति के रूप में चुन लिए गये जोकि कलाम साहब का बहुत ही सादा-जीवन वाला कार्यकाल रहा था। कलाम ने अपने राष्ट्रपति पद का कार्यकाल 25 जुलाई, 2007 को पूरा किया।
राष्ट्रपति पद को छोड़ने के बाद डॉ. कलाम भारत ने कई संस्थानों के एक मानद साथी के तौर पर विजिटिंग प्रोफ़ेसर रहे। इसके अलावा कलाम ‘भारतीय अंतरिक्ष विज्ञान एवं प्रौधोगिकी संस्थानतिरुवनंतपुरम’ (Indian Institute Of Space Science and Technology Thiruvananthapuram) में चांसलर और अन्ना विश्व विश्वविद्यालय में एयरोस्पेस इंजीनियरिंग में बतौर प्रोफेसर और भारत कई दूसरे शैक्षणिक और अनुसंधान संस्थानों सहायक रहे और पढाया।
डॉ. कलाम (Dr. APJ Abdul Kalam) ने अपने जीवन-काल में एक लेखक के तौर पर भी छाप छोड़ी है। जिसमे उन्होंने साहित्यिक रूप से अपने विचारों को समाहित तो किया है; साथ में अपनी जीवनी को सह-लेखक के साथ कागज के पन्नो पर उतारा है। इसके अलावा इन्होने ‘इंडिया 2020 – ए विजन फॉर दी न्यू मिलेनियम’, ‘माय जर्नी’, ‘इग्राटिड माइंडस – अनलीशिंग दी पॉवर विदिन इंडिया’ और ‘विंग्स ऑफ़ फायर – एन ऑटोबायोग्राफी ऑफ़ ए.पी.जे. अब्दुल कलाम’ आदि किताबें खाश हैं।
डॉ कलाम (Dr. APJ Abdul Kalam) को मिले पुरुस्कार और सम्मान की बात करें तो इन्हें अपने जीवन-काल में अनैकों सम्मान और उपाधि हासिल हुई। कलाम को भारत समेत दुनिया-भर से लगभग 40 विश्वविद्यालयों से मानद डोक्टरेट की उपाधियाँ हाशिल हुई। भारत के अनैक सम्मान के साथ कलाम को देश के सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न से भी नवाजा गया था। इसके अलावा कलाम को दुनियाभर से सम्मान मिले।
चलिए कलाम साहब को मिले कुछ सम्मानों और मानद-पदों पर नीचे दी हुए लेख में नजर डालते हैं। –
भारत को उपर ले जाने में बहुत अधिक योगदान करने वाले ‘डॉ. अवुल पकीर जैनुलब्दीन अब्दुल कलाम’ साहब जब शिलोंग यूनिवर्सिटी में भाषण दे रहे थे। उसी दौरान कलाम को दिल का दौड़ा पड़ा और वह ज़मीन पर गिर पड़े। इसके बाद उन्हें आनन-फ़ानन में नजदीकी अस्पताल में भर्ती कराया गया। लेकिन डॉक्टर्स ने 2 घंटे बाद ही कलाम साहब को मृत घोषित कर दिया और कलाम साहब ने 83 वर्ष, 9 महीनों और 12 दिनकी आयु में 27 जुलाई, 2015 को दुनिया को हमेशा-हमेशा के लिए अलविदा कह दिया।
कलाम जी (APJ Abdul Kalam) के अंतिम संस्कार की बात करें तो इनकी म्रत्यु के तुरंत बाद इनके पार्थिव-शरीर को भारतीय वायु सेना के हेलीकाप्टर द्वारा शिलोंग से गुवाहाटी लाया गया। इसके बाद अगले दिन 28 जुलाई मंगलवार-दोपहर कलाम के पार्थिव शरीर को वायुसेना के विमान द्वारा दर्शन के लिए दिल्ली लाया गया और पूर्ण राजकीय सम्मान के साथ इनके पार्थिव-शरीर को विमान से नीचे उतारा गया था।
जिसके बाद भारतीय-तिरंगे में लपेटकर कलाम साहब के पार्थिव-शरीर को पूरे सम्मान के साथ उनके आवास 10 राजा-जी मार्ग पर लाया गया। इसके बाद सभी नेता, राजनेताओं और गणमान्य लोगों ने भाव-पूर्ण उन्हें श्रधांजलि अर्पित की।
इसके बाद कलाम साहब के पार्थिव शरीर को वायुसेना के द्वारा तिरंगे में लपेटे उनके पेत्रक-स्थान रामेश्वरम लाया गया। इनके पार्थिव-शरीर को खुले मैदान में प्रदर्शित किया गया जिससे कि आम जनता भी उनको आखिरी बार श्रद्धांजलि दे सके। इसी के साथ 30 जुलाई, 2015 को भारत के पूर्व राष्ट्रपति और महान वैज्ञानिक को पूर्ण सम्मान के साथ ‘के.पी. करुम्बु मैदान’ में दफना दिया गया। जिसमे प्रधानमंत्री मोदी के साथ कई राज्यों के मुख्य-मंत्रियों ने हिस्सा लिया था।
भारत-सरकार ने कलाम साहब के निधन के मौके पर उनके सम्मान में सात दिन के राजकीय शौक की घोषणा कर दी।
कलाम साहब (APJ Abdul Kalam) को अपने जीवन में बहुत सारा सम्मान और इज्जत मिली है। कहते हैं न कि ‘GREAT SOULS NEVER DIE’ इसीलिए कलाम साहब हमेशा हमारे दिलो में जिंदा रहेंगे क्योंकि कलाम के विचार आज भी लाखों लोगों को प्रेरित (Inspire) करते हैं।
“सपने तभी सच होते जब हम सपने देखते हैं।”
“कठिन परिश्रम करने के बाद ही सफलताओं का आनंद लिया जा सकता है।”
“किसी को हराना तो बहुत आसान है लेकिन जीतना बहुत कठिन है।”
“सपने वह नही हैं जो आप सोते समय देखते हैं, सपने तो वह हैं जो आपको सोने ही न दें।”
“यदि आप सूरज की तरह चमकना चाहते हैं, तो पहले आपको सूरज की तरह जलना होगा।”
“मैं ख़ूबसूरत नहीं हूँ, लेकिन मैं किसी भी ऐसे व्यक्ति की ओर हाथ बढा सकता हूँ, जिसे वास्तव में मदद की जरूरत है, क्योंकि ख़ूबसूरती चेहरे पर नहीं वल्कि दिल में होती है।”
“विजेता वह नहीं होते जो कभी असफ़ल नहीं होते, विजेता तो वह होते हैं जो कभी हार नहीं मानते।”
“सपने, सपने, सपने! सपने विचारों में परिवर्तित होते हैं और विचार परिणामों में परिवर्तित होते हैं।”
“यदि आप अपने कर्तव्य को सलाम करते हो, तो आपको किसी को भी सलाम करने की जरूरत नहीं है, लेकिन यदि आप अपने कर्तव्य को भूल जाते हो, तो आपको हर किसी को सलाम करने की जरूरत पड़ती है।”
“छोटा लक्ष्य देखन अपराध है, इसलिए जीवन में बहुत बड़ा उद्देश्य होना चाहिए।”
दोस्तों हम आशा करते हैं कि आपने एपीजे अब्दुल कलाम का जीवन परिचय | APJ Abdul Kalam biography in hindi को यहाँ तक पढकर यह जाना होगा कि कलाम भारतीयों के दिल में क्यों बसते हैं?
हिंदीलीफ़.कॉम ( hindileaf.com ) की ओर से डॉ कलाम साहब (APJ Abdul Kalam) के बारे में उल्लेख कर एक छोटा सा सम्मान (Tribute) है। क्योंकि दुनिया भी जानती है कि कलाम साहब भारत के असल हीरो और एक आदर्श हैं जोकि एक बेहतरीन वैज्ञानिक और दरियादिल इंसान थे।
हमने डॉ अवुल पकीर जैनुलब्दीन अब्दुल कलाम साहब के बारे में लिखने की कोशिश कर कलाम साहब को दिल से सलाम करते हैं। इसके अलावा हम आपको यूट्यूब पर मौजूद डॉ. कलाम साहब की ऑटोबायोग्राफी को सुनने की सलाह देते हैं; जिसे गुलज़ार साहब ने बोला है। आपकी जानकारी के लिए बता दें कि हमने इस लेख के लिए प्रेरणा (Inspiration) इस ऑटोबायोग्राफी से भी ली है।
उत्तर – एपीजे अब्दुल कलाम का जन्म 15 अक्टूबर, 1931 को धनुषकोणी गाँव, रामेश्वरम, मद्रास प्रेसीडेंसी (ब्रिटिश-इंडिया) में हुआ था जोकि अब भारत के तमिलनाडु राज्य में स्थित है।
प्रश्न – एपीजे अब्दुल कलाम की शिक्षा क्या थी?उत्तर – एपीजे अब्दुल कलाम सर ने अपनी 10वीं स्वार्ड्स हाईस्कूल, रामनाथपुरम से, इंटरमीडिएट और ग्रेजुएशन सेंट जोसेफ कॉलेज, तिरुचिरापल्ली से और एयरोनॉटिकल साइंस डिप्लोमा MIT यानिकि मद्रास इंस्टिट्यूट ऑफ़ टेक्नोलॉजी से किया था।
इस लेख में इतना ही जिसके माध्यम से हमने एपीजे अब्दुल कलाम का जीवन परिचय | APJ Abdul Kalam biography in hindi के जीवन से जुड़े पहलुओं को विस्तार से समझाया है। इसके अलावा APJ Abdul Kalam history in hindi, APJ Abdul Kalam story in hindi, APJ Abdul Kalam personal life in hindi और Interesting facts about Apj Abdul Kalam in hindi, Apj Abdul Kalam quotes in hindi को बताया है।
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June 3, 2022
February 1, 2021